ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और तथाकथित गॉड पार्टिकल(God Particle)
जेनेवा स्थित यूरोपियन ऑर्गनाइज़ेशन न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न)
द्वारा दुनिया के सबसे बड़े
महाप्रयोग में १०० से ज्यादा देशों के करीब ८००० वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया और इस पर १० अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा खर्च हुये जिसके परिणाम में तथाकथित
गॉड पार्टिकल
(हिग्स बोसोन) की खोज करने का दावा कर रहे वैज्ञानिकों की यह सारी
खोज आधी अधूरी अपूर्ण के साथ-साथ अनुमान पर आधारित है। 
वैज्ञानिकों का मानना है कि “हिग्स बोसोन” यानि वस्तु में मिलने वाला वह सूक्ष्म कण जिसके कारण वस्तु में भार है। जिसके कारण
ही सभी वस्तुएं आपस में संघठित हैं, जो अरबों साल पहले हुये एक महाविस्फोट के बाद अस्तित्व में आया जिसे ही आज के वैज्ञानिक हिग्स बोसोन, ईश्वरीय कण, ब्रह्म कण (God
Particle) को अलग-अलग नामों से
सम्बोधित कर रहे हैं। इस वैज्ञानिक खोज को भारतीय धर्म गुरु धर्माचार्य भी यह कहते
हैं कि कण-कण में भगवान है जिसको विज्ञान ने भी प्रमाणित कर दिया। वैज्ञानिकों का
मानना है कि हिग्स बोसोन (ब्रह्म कण) समझ लेने से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के रहस्य को जानने में बड़ी मदद मिलेगी, यह पता चल सकेगा कि ब्रह्माण्ड जिससे हमारी धरती, चाँद, सूरज सितारे, आकाश गंगायें हैं, कैसे बना? अभी तक विज्ञान मान रहा है कि अरबों साल पहले हुये एक महाविस्फोट जिसे बिग बैंग
कहा जाता है, के बाद पदार्थ बने और फिर हमारा ब्रह्माण्ड, लेकिन यह महाप्रयोग उस राज से पर्दा उठा देगा कि ऊर्जा से पदार्थ कैसे बनता है।
विज्ञान के इस आधे-अधूरे अप्रमाणित अनुमानित खोज से कई प्रश्न पैदा हो जाते हैं, जैसे कि महाविस्फोट कब और कहाँ हुआ ? महाविस्फोट किन-किन पदार्थों के बीच हुआ ? महाविस्फोट में प्रयोग होने वाले पदार्थों की उत्पत्ति कैसे हुई
और कब हुई ? ये हिग्स बोसोन के कारण जो वस्तुओं में भार है इसका ओरिजिन कहाँ से है? फिर इस कण से आगे यह ऊर्जा (Sound and Light) की उत्पत्ति कहाँ से हुई ? फिर यह ब्रह्माण्ड जिस विस्फोट से बना आखिर वह
महाविस्फोट क्यों हुआ ? उसका कारण क्या था? महाविस्फोट में कौन कौन से पदार्थ थे और पदार्थों की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ? ब्रह्माण्ड में पदार्थों में पायी जाने वाली ऊर्जा शक्ति की
उत्पत्ति कहाँ से हुई ? आदि आदि बहुत प्रश्न हैं जिसका जवाब न तो इन वैज्ञानिक
के पास है, न इन तथाकथित धर्मगुरूओं के पास है। पदार्थ में पाये
जाने वाले सूक्ष्म कण हिग्स बोसोन को ही कण कण में भगवान घोषित करना आधे-अधूरे ज्ञान की पहचान है। कण कण में तो जीव भी नहीं
है, चेतन भी नहीं है बल्कि जिस कण में चेतन विहीन शक्ति है, चेतन विहीन शक्ति को ही आजकल के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक
लोग परमात्मा-परमेश्वर-भगवान कह कर घोषित करने में लगे हैं और परमात्मा-परमेश्वर-भगवान-खुदा-गॉड के पृथक अस्तित्व को
मिटाने में लगे हैं जो कि घनघोर भगवद्द्रोही कार्य है। जब-जब धरती पर ऐसा असुरता
रूप नास्तिकता फैलता है तब-तब इस धरती पर स्वयं परमप्रभु-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्माण्ड के रहस्यों को उजागर
करने हेतु तथा विज्ञान और अध्यात्म का भी रहस्य उजागर करने के लिए अवतरित होते
हैं। वास्तव में इस सृष्टि ब्रह्माण्ड का रहस्य और भगवान का रहस्य इस संसार से
लेकर सम्पूर्ण सृष्टि में कोई जानता ही नहीं चाहे वैज्ञानिक लोग महाप्रयोग करें और
आध्यात्मिक लोग जितने भी आध्यात्मिक अनुसन्धान करें, पूरा जीवन लगा दें, लाखों करोड़ों वर्ष लगा दें तब भी इस सृष्टि का और परमात्मा का रहस्य कोई नहीं जान
पाएगा। यह सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्माण्डों का रचनाकार उत्पत्तिकर्ता स्वयं परमात्मा-परमेश्वर-भगवान हैं, इस सृष्टि के सम्पूर्ण रहस्य मात्र उसी के पास हैं।
विज्ञान की पहुँच पदार्थ (कण) जड़ तक ही होती है। पदार्थ से पहले शक्ति (Sound and Light) का रहस्य, इसका उत्पत्ति रहस्य विज्ञान से मिलना कदापि सम्भव नहीं
है। ठीक उसी प्रकार किसी भी ध्यान-साधना की अवस्था में दिखाई देने वाले आत्मा
ज्योति, दिव्य ज्योति, ब्रह्म ज्योति, शिव शक्ति, Soul, Divine Light, Life Light, अलिमे नूर की उत्पत्ति का रहस्य किसी भी योगी यति आध्यात्मिक के पास नहीं होता। अर्थात् वैज्ञानिकों का जड़ पदार्थ और अध्यात्मिकों का चेतन ज्योति का
रहस्य केवल अवतार भगवान के तत्त्वज्ञान में
होता है। 
वर्तमान के उसी परमात्मा-परमेश्वर-भगवान-खुदा-गॉड-परमतत्त्वम् शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् के पूर्णावतारी भगवान सदानन्द जी ने वर्तमान में हम लोगों को इस सम्पूर्ण सृष्टि
की उत्पत्ति का रहस्य सहित उस भगवान का भी रहस्य जनाया-दिखाया और बताया। 
वर्तमान भगवदावतारी परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस के अनुसार यह
सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्माण्ड का रहस्य न वैज्ञानिकों के पास है न किसी आध्यात्मिक के पास है बल्कि वह भगवदावतार के तत्त्वज्ञान में समाहित है। 
“जब
कहीं कुछ भी नहीं था, न यह
सृष्टि था, न यह
ब्रह्माण्ड, न यह
ब्रह्माण्ड में दिखाई देने वाला आकाश, वायु, अग्नि, जल, थल, न सूरज, न चाँद, न तारे, न आकाश गंगायें, न पदार्थ, न चेतन न यह हिग्स बोसोन, न यह ब्रह्म कण अर्थात् जब यह सृष्टि थी ही नहीं तब वह
परमात्मा-परमेश्वर-भगवान-खुदा-गॉड ‘शब्द रूप’ वचन रूप में परमआकाश रूप परमधाम में था। उसे ही शब्दब्रह्म भी कहा जाता है। जिस
शब्द वचन रूप
परमात्मा के अन्दर सृष्टि
रचना का संकल्प हुआ। संकल्प यानी कुछ हो, भव, कुन, To Be. यह भाव होते ही उस शब्दरूप परमात्मा से एक शब्द निकलकर अलग हुआ यानी एक शब्द उस परमात्मा से छिटका जो शब्द
प्रचण्ड तेज पुञ्ज से युक्त था यानी उस में इतना ज्योति तेज शक्ति से युक्त था।
इसको ही आदिशक्ति, मूल प्रकृति, अव्यक्त प्रकृति भी कहा जाता है। उस शब्द रूप परमात्मा से एक शब्द छिटकने के पश्चात्त भी उस परमात्मा वाले शब्द में किसी
प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ बल्कि वह एक सम्पूर्ण शब्द ही बना रहा, यही इस परमात्मा की आश्चर्यमय विशेषता थी। शब्दरूप भगवान
से जो शब्द निकला, जो प्रचण्ड तेज पुञ्ज अक्षय ज्योति से युक्त था उसको ही सम्पूर्ण सृष्टि का कार्यभार सौपा गया। यानी
मूल प्रकृति को ही सृष्टि का कार्यभार परमात्मा ने सौंपा और सृष्टि करने के लिए इच्छा शक्ति (Will Power) दिया। (इसी शब्दरूप भगवान से एक शब्द निकलकर छिटककर प्रचण्ड तेज पुञ्ज हुआ इसको विज्ञान अनुमान के आधार पर महाविस्फोट कहता है जिसको परमपूज्य सन्त
ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस ने अपने ज्ञान में प्रयौगिक करके दिखाया) फिर इस प्रचण्ड तेज पुञ्ज शब्द शक्ति से शक्ति निकलकर पृथक हुई जो चलकर आकाश, वायु, अग्नि, जल और थल का रूप लिया यानी पदार्थ का रूप लिया फिर इस सृष्टि का संरचना हुआ यानी उस शक्ति से ही पदार्थ बनते हुये इस ब्रह्माण्ड का रचना हुआ। ”     
आदि आदि सृष्टि रचना सम्बंधित सम्पूर्ण रहस्यों को
वर्तमान में परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी
सदानन्द जी परमहंस ने अपने ज्ञान में जनाया-दिखाया जो सभी सद्ग्रंथ द्वारा
प्रमाणित है। सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस ने इस सृष्टि की उत्पत्ति
का सम्पूर्ण रहस्य अपने द्वारा विरचित
सद्ग्रंथ “कैसे
हुई स्थूल जगत की रचना” में विस्तृत रूप में खोल दिया है। जिससे आप पाठक जन पढ़कर जान सकते हैं की किस तरह आज ये वैज्ञानिकों का हिग्स बोसोन का खोज आधा-अधूरा अनुमान पर आधारित है।
बल्कि भगवदावतार परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी
सदानन्द जी परमहंस के अनुसार – 
सृष्टि की उत्पत्ति:-
आदि के पूर्व में जब मात्र “परमतत्त्वम्
आत्मतत्त्वम् रूप शब्दब्रह्म ही थे। उन्हे संकल्प उत्पन्न हुआ कि कुछ हो। चूँकि वे
सत्ता सामर्थ्य से युक्त थे और उनके कार्य करने का माध्यम संकल्प ही है। इसलिए कुछ
हो संकल्प करते ही उन्ही शब्दब्रह्म का अंगरूप शब्द शक्ति सः (आत्मा) छिटककर अलग हो गयी, जो संकल्प रूपा आदि शक्ति अथवा मूल प्रकृति कहलायी।
तत्त्वज्ञान शब्दब्रह्म के निर्देशन में (सः आत्मा)
रूप शब्द शक्ति को सृष्टि उत्पत्ति सम्बन्धी कार्यभार मिला अर्थात् सृष्टि (ब्रह्माण्ड) के सम्बन्ध में निर्देशन, आज्ञा एवं आदेश परमतत्त्वम्
आत्मतत्त्वम् रूप शब्दब्रह्म स्वयं अपने पास, उत्पत्ति संचालन और संहार से सम्बंधित क्रिया-कलाप (सः) आत्मा रूप शब्द शक्ति के पास सौंपा परन्तु स्वयं को इन
क्रिया कलापों से परे रखा।”
शब्द शक्ति रूप आदि-शक्ति ही मूल प्रकृति भी कहलायी, क्योंकि प्रकृति की उत्पत्ति इसी आदिशक्ति रूप में हुई इसलिए
यह मूल प्रकृति भी कहलायी। पुनः आदिशक्ति ने शब्दब्रह्म के निर्देशन एवं सत्ता-सामर्थ्य के अधीन कार्य
प्रारम्भ किया। इन्हे कार्य के निष्पादन हेतु इच्छा शक्ति मिला। तत्पश्चात्
आदिशक्ति ने सृष्टि उत्पत्ति की इच्छा की तो इच्छा करते ही शब्द शक्ति रूपा
आदिशक्ति का तेज दो प्रकार की ज्योतियों में विभाजित हो गया, जिसमें पहली ज्योति तो आत्मा
ज्योति अथवा दिव्य ज्योति कहलायी तथा दूसरी ज्योति मात्र ज्योति ही कहलायी अर्थात्
पहली ज्योति आत्मा जो चेतनता से युक्त है तथा दूसरी
ज्योति शक्ति कहलायी इसी से पदार्थ की उत्पत्ति हुई। 
परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस का यह
सिद्धान्त सभी सद्ग्रंथ वेद-उपनिषद, रामायण, गीता, कुरान, बाइबिल द्वारा प्रमाणित है और उन्होने इस सिद्धान्त को प्रयौगिक
साक्षात् जनाया और दिखाया। 

